बाबा गोविन्द्नाथ झाडखण्ड़नाथ तीर्थ स्थली के भक्तों के गुरू के रूप में माने व पूजे जाते है। बाबा गोविन्द्नाथ की स्मर्णीय यादों में बताया जाता है की एक मुस्लिम फकीरन, जो कि झाडखण्ड़नाथ महादेव कि अनन्य भक्त थी, इसका वर्णन ऊपर दिया जा चुका है। मुस्लिम फकीरन एक ७ वर्ष के बालक को लेकर इस पवित्र तीर्थ स्थान पर आई थी । इस बालक को नाथ संप्रदाय से दीक्षित करके तपस्या करने के लिये यहां बैठा दिया।इस बालक ने अपनी तपस्या से सिध्दी प्राप्त की और यहीं बालक आगे चल कर बाबा गोविन्द्नाथजी के नाम से प्रसिध्द हुये। झाड़खण्ड महादेव तीर्थ स्थली की प्रसिद्धि व लोगों कि आस्था बाबा गोविन्दनाथ जी के प्रति अटूट हैं। बाबा गोविन्दनाथ जी को झाडखण्ड महादेव ने अपने आर्शिवाद से परिपूर्ण करते हुए इस तीर्थ स्थान की ख्याति का श्रेय बाबा गोविन्दनाथजी श्रद्धा के साथ गुरू के रूप में पूजे जाते है। झाडखण्डनाथ तीर्थ स्थली परिसर के आंतरिक भाग में बाबा गोविन्दनाथजी कि समाधि उत्तर पूर्व के कोने में स्थापित है यहां लोग बडी श्रद्धा से नमन करके अपनी मनोकामना पूर्ण होने की कामना व बाबा का ध्यान करते है। बाबा गोविन्दनाथ जी महादेव कि भक्ति मे ही बिताया, वह उस समय पास के गांवों मे से केवल 5-6 घरों से ही भिक्षा लेते और उस भिक्षा को लेकर पूर्व से उत्तर दिशा कि ओर जाते तथा जो भिक्षा प्राप्त होती थी वह सब चीटीयों को डाल देते थे। इसके बाद बाबा गोविन्द्नाथ उत्तर दिशा में जातें वह स्थान उस समय नये गांव के नाम से जाना जाता था, आज यहां वर्तमान में एक कल्याण चौकी है यहां से भी भिक्षा लेकर उसे भी चीटीयों को डाल देते । इसके बाद बाबा गोविन्द्नाथ  पश्चिम दिशा में जाते आज यहां वर्तमान में खातीपुरा कहलाता है यहां से भिक्षा लेकर मंदिर आकर दो मोटे टिक्क्ड़ बनाते, उसमें से एक महादेव को चढाते व दूसरा भैरोनाथ मंदिर में चढाते थे , उस समय कुत्तों को डाल दिया करते थे । दूसरा टिक्कड़ (आटे की मोटी रोटी को टिक्कड़ कहा जाता है) जो झाडखण्ड महादेव को चढा़ते थे उसे स्वयं खाते थे । यह बाबा गोविन्दनाथ जी कि रोज की दिनचर्या हुआ करती थी । मानव कल्याण करते हुए जब बाबा गाविन्द्नाथ यह अहसास हुआ की उनका इस संसार में आने का उद्देशय पूर्ण हो गया है तो उन्होने अपना शरीर छोड़ने का मानस बनाया व ऐसा बताया जाता है बाबा गोविन्द्नाथजी की घोषणा के अनुसार ही बाबा गोविन्द्नाथजी ने अपना शरीर फाल्गुन कृष्ण सवत् 1995 को छोड़ दिया था, अपनी यादों व जनकल्याण के आर्शिवाद के साथ। आज भी झाडखण्डनाथ परिसर में बाबा गोविन्द्नाथ की अदृष्य छवि का अहसास किया जा सकता है उनके आर्शिवाद के रूप में ।